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Monday, 25 July 2005

ठारी के चुकलऽ बानर आरी के चुकलऽ गृहस्त | अंगिका कहावत

ठारी के चुकलऽ बानर आरी के चुकलऽ गृहस्त


अर्थ -  डाल के चूके बंदर और आर (खेत के मेढ़) को अच्छी तरह से बाँधने में चूके गृहस्थ को कहीं भी शरण नहीं मिलती  ।

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